मार्च माह में बढ़ती गर्मी से गेहूं उत्पादन में कमी की आशंका

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: March 22, 2025 12:27 IST2025-03-22T12:01:13+5:302025-03-22T12:27:45+5:30

मार्च गेहूं, चना और सरसों के लिए अनुकूल नहीं रहेगा। फसलों को गर्मी का तनाव झेलना पड़ सकता है, जिसे टर्मिनल हीट का प्रभाव कहा जाता है ।

climate change affects wheat production due to increasing heat in March | मार्च माह में बढ़ती गर्मी से गेहूं उत्पादन में कमी की आशंका

मार्च माह में बढ़ती गर्मी से गेहूं उत्पादन में कमी की आशंका

जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के परिणाम अब अबहुधा परिलक्षित हो रहे है जिससे मानव जीवन के साथ ही पशुपालन एवं कृषि पर भी इसके दुष्परिणाम साफ दिखाई पड़ने लगे है। इसकी वजह से मौसम का मिजाज लगातार बदल रहा है।  जहाँ शीत ऋतु की अवधि घट रही है वहीं दूसरी ओर गर्मी के मौसम में बेहिसाब बढ़ते तापमान से जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो रहा है, एवं बारिश में भी लगातार कमी हो रही है।

भारत की कृषि जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। एक अनुमान के अनुसार, यदि अनुकूलन उपाय नहीं किए गए तो वर्षा आधारित धान की पैदावार 2050 तक 20% और 2080 तक 47% तक गिर सकती है। इसी तरह, गेहूं की पैदावार 2050 तक 19.3% और 2080 तक 40% तक घटने की संभावना है। हाल के अध्ययन बताते हैं कि 2010 में जलवायु और प्रदूषण उत्सर्जन प्रवृत्तियों के कारण गेहूं की पैदावार औसतन 36% तक कम रही, जबकि कुछ घनी आबादी वाले राज्यों में यह नुकसान 50% तक दर्ज किया गया। ये कमी न केवल खाद्य सुरक्षा को खतरे में डालती है, बल्कि लाखों किसानों की आजीविका को भी प्रभावित करती है।

हम यहाँ बदलते जलवायु के फसलों पर होने वाले दुष्परिणामों की बात करेंगें। जलवायु परिवर्तन के परिणाम स्वरुप चक्रवातीय तूफानों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि देखि गयी है। बरसात के मौसम में वर्षा दिनों की गिरती संख्या एवं असामान्य रूप से सूखा पड़ना यह इंगित करता है की यह मौसम वर्षा आधारित खेती के लिए पूर्णतः धोखेबाज़ साबित हो रहा है। वर्ष २०२४ के खरीफ सीजन में सितंबर एवं अक्टूबर महीने में सामान्य से अधिक बारिश होने से धान फसल के कटाई में देरी हुई, साथ ही रबी फसलों की बुवाई के लिए खेत की तैयारी में भी विलम्ब हुआ।  

इसके कारण उत्तर एवं पूर्वी बिहार के अधिकांश किसानों द्वारा गेहूं की बुवाई में करीब १५-२० दिनों या अधिक की देर हुई। ओर अब जब फरवरी माह में ही अचानक तापमान बढ़ने लगा, बिहार के करीब ६ जिलों में तापमान ३० डिग्री सेल्सियस के करीब पहुंच गया तो लगा जैसे रबी फसलों की शामत ही आ गयी हो। लेकिन एक बार फिर से चक्रवाती हवाओं ने मोर्चा थम लिया और मार्च प्रथम सप्ताह तक मौसम अनुकूल बना रहा है। लेकिन अब फिर से मौसम वैज्ञानिकों के दावों से किसानों में भय का माहौल है।

मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, मध्य और उत्तरी भारत के प्रमुख गेहूं उत्पादन वाले क्षेत्रों में तापमान सामान्य से 6 डिग्री सेल्सियस तक अधिक बढ़ सकता है। इस साल मार्च असामान्य रूप से गर्म रहने वाला है। अधिकतम और न्यूनतम दोनों तापमान महीने के अधिकांश समय सामान्य से अधिक बने रहेंगे। समय से पहले बढ़ रहे तापमान से देश की प्रमुख फसल गेहूं को खतरा हो सकता है, जो पहले ही लगातार तीन वर्षों से कम उत्पादन के दबाव में है। मार्च गेहूं, चना और सरसों के लिए अनुकूल नहीं रहेगा। फसलों को गर्मी का तनाव झेलना पड़ सकता है, जिसे टर्मिनल हीट का प्रभाव कहा जाता है ।

गेंहू और अन्य रबी फसलों पर टर्मिनल हीट का प्रभाव: टर्मिनल हीट स्ट्रेस उस स्थिति को दर्शाता है जब फसल के दाने भरने और पकने की अवस्था में तापमान अचानक बढ़ जाता है। यह भारत में गेहूं और अन्य रबी (सर्दियों में बोई जाने वाली) फसलों के लिए एक बड़ी जलवायु चुनौती बनता जा रहा है, खासकर समय से पहले गर्मी और हीटवेव की घटनाओं के बढ़ने से।

1. गेहूं के उत्पादन और उत्पादकता पर प्रभाव: गेहूं तापमान में होने वाले बदलावों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होता है, और मार्च-अप्रैल में इसके विकास के अंतिम चरण में अत्यधिक गर्मी से दाने भरने की अवधि कम हो जाती है, अधिक तापमान के कारण दाने जल्दी पक जाते हैं, जिससे स्टार्च संचय का समय कम हो जाता है, और छोटे, सिकुड़े हुए दाने बनते हैं। 

गेंहू के उत्पादन में कमी आती है- शोध से पता चला है कि यदि तापमान 30°C से 1°C अधिक हो जाए, तो गेहूं की उपज में 3-5% की कमी आ सकती है।

गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव – उच्च तापमान से प्रोटीन की मात्रा और ग्लूटेन गुणवत्ता कम हो जाती है, जिससे आटा बनाने और ब्रेड की गुणवत्ता प्रभावित होती है।

पानी की मांग बढ़ जाती है – अत्यधिक गर्मी से वाष्पीकरण बढ़ जाता है, जिससे सिंचाई कम प्रभावी होती है और फसल को पानी की अधिक आवश्यकता होती है।

2. अन्य रबी फसलों पर प्रभाव: चना (ग्राम): टर्मिनल हीट के कारण फली बनने की प्रक्रिया प्रभावित होती है, जिससे बीज छोटे और हल्के हो जाते हैं। 35°C से अधिक तापमान फूल झड़ने और बीज की निष्फलता को बढ़ा सकता है।

सरसों : उच्च तापमान से फूल आने और बीज बनने की अवधि कम हो जाती है, जिससे तेल की मात्रा और बीज का आकार घटता है।

मसूर और जौ: अत्यधिक गर्मी से बायोमास का संचय कम हो जाता है, जिससे उपज और पोषण गुणवत्ता दोनों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

बढ़ते वैश्विक तापमान के कारण टर्मिनल हीट स्ट्रेस भारतीय कृषि के लिए गंभीर चुनौती बनता जा रहा है। अनुकूलन तकनीकों, नई किस्मों के विकास, और नीतिगत हस्तक्षेपों के माध्यम से गेहूं और अन्य रबी फसलों को जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है।

भारत की कृषि जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। एक अनुमान के अनुसार, यदि अनुकूलन उपाय नहीं किए गए तो वर्षा आधारित धान की पैदावार 2050 तक 20% और 2080 तक 47% तक गिर सकती है। इसी तरह, गेहूं की पैदावार 2050 तक 19.3% और 2080 तक 40% तक घटने की संभावना है।

हाल के अध्ययन बताते हैं कि 2010 में जलवायु और प्रदूषण उत्सर्जन प्रवृत्तियों के कारण गेहूं की पैदावार औसतन 36% तक कम रही, जबकि कुछ घनी आबादी वाले राज्यों में यह नुकसान 50% तक दर्ज किया गया। ये कमी न केवल खाद्य सुरक्षा को खतरे में डालती है, बल्कि लाखों किसानों की आजीविका को भी प्रभावित करती है।

भारत दुनिया में गेहूं का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है, लेकिन लगातार चरम गर्मी के कारण पिछले कुछ वर्षों में पैदावार में गिरावट आई है। इस कारण भारत को 2022 में घरेलू आपूर्ति की सुरक्षा के लिए गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना पड़ा था, जिससे वैश्विक गेहूं बाजार भी प्रभावित हुआ। यदि 2025 में भी फसल खराब होती है, तो भारत को महंगे आयात पर अधिक निर्भर होना पड़ेगा, खासकर ऐसे समय में जब वैश्विक खाद्य कीमतों में अस्थिरता बनी हुई है।

(अजीत सिंह बिहार राज्य में क्लाइमेट स्मार्ट एग्रीकल्चर प्रोग्राम के प्रबंधक के रूप में कार्यरत हैं, जिसे एनवायर्नमेंटल डिफेंस फंड द्वारा समर्थित किया जा रहा है। वह एक वरिष्ठ कृषि और आजीविका कार्यक्रम विशेषज्ञ हैं, जिनके पास 20 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने भारतीय और अंतरराष्ट्रीय दाताओं के लिए टिकाऊ कृषि कार्यक्रमों की रणनीति बनाने, डिजाइन करने और उन्हें बड़े पैमाने पर लागू करने में महत्वपूर्ण तकनीकी विशेषज्ञता साबित की है। उन्हें सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों (GO & NGO) के साथ कृषि में एक्शन रिसर्च कार्यक्रमों पर काम करने का व्यापक अनुभव है।)

Web Title: climate change affects wheat production due to increasing heat in March

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे