राखालदास बनर्जी जयंती: मोहनजोदड़ो की खोज करने वाले इतिहासकार के जीवन से जुड़ी 10 बातें
By खबरीलाल जनार्दन | Updated: April 12, 2018 07:39 IST2018-04-12T07:39:13+5:302018-04-12T07:39:13+5:30
राखालदास बनर्जी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के प्राचीन इतिहास विभाग में भी प्रोफेसर के तौर पर काम किया था।

राखालदास बनर्जी जयंती: मोहनजोदड़ो की खोज करने वाले इतिहासकार के जीवन से जुड़ी 10 बातें
सिंघु घाटी सभ्यता के सबसे उन्नत शहर मोहनजोदड़ो की खोज करने वाले इतिहासकार राखालदास बनर्जी की भी। आज (12 अप्रैल) ही के दिन उनका जन्म हुआ था। मोहनजोदड़ो एक सिन्धी शब्द है, जिसे 'मुअन जो दड़ो' से उच्चारण करते हैं। इसका आशय मुर्दों का टीला होता है। इसकी खोज राखलदास बनर्जी ने की थी। अब आइए इतिहासकार राखलदास की जिंदगी को 10 प्वाइंट्स में समझते हैं-
1- राखालदास बनर्जी का जन्म पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में 12 अप्रैल 1885 को हुआ था। अपने घरवालों और दोस्तों वे आरडी या आरडी बनर्जी के नाम से मशहूर थे।
2- अपने मूल निवास स्थान से शुरुआती पढ़ाई करने के बाद वे कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज आए। यहां पढ़ाई के दौरान वे हरप्रसाद शास्त्री, बंगला लेखक रामेंद्रसुंदर त्रिपाठी व बंगाल सर्किल के पुरातत्व अधीक्षक डॉ ब्लॉख के संपर्क में आए।
3- इनके संगत में आकर राखलदास की रुचि इतिहास और पुरातत्वविज्ञान में जागी। कॉलेज के समय ही वे अन्वेषणों व उत्खननों में नौकरी करने लगे।
4- साल 1907 में उन्होंने आर्ट्स में स्नातक किया। लेकिन उनके इतिहास से लगाव को देखते हुए प्रांतीय संग्रहालय और लखनऊ के सूचीपत्र तैयार करने की जिम्मेदारी सौंप दी गई। इसे करते-करते उन्होंने इतिहास पर अच्छा अध्ययन कर डाला और इतिहास पर लेख-आलेख का कार्य शुरू कर दिए।
5- लेकिन इन तमाम कामों के बीच उन्होंने अपनी एकेडमिक शिक्षा नहीं छोड़ी। सन 1910 में उन्होंने परास्नातक (मास्टर डिग्री) की परीक्षा उतीर्ण कर ली। इसके बाद उन्हें प्रमोट कर के उत्खनन सहायक (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) के पद पर नियुक्त कर दिय गया।
6- इसके बाद करीब एक साल तक राखलदास कलकत्ता स्थित इंडियन म्यूजियम में काम करते रहे। इस दौरान वे इतिहास के बेहद करीब पहुचं गए।
7- वर्ष 1917 में राखलदास को पूना (अब पुणे) में पुरातत्व सर्वेक्षण के पश्चिमी मंडल के अधीक्षक के तौर नियुक्त किया गया। इसके बाद वे करीब 6 सालों तक वे महाराष्ट्र, गुजरात, सिंध (अब पंजाब), राजस्थान और मध्यप्रदेश की रियासतों में घूमते रहे। इस दौरान राखलदास ने जो काम किए उन्हें 'एनुअल रिपोर्ट्स ऑव द आर्क्योलॉजिकल सर्वे ऑव इंडिया' में आज भी संचित हैं।
8- इस दौर में वे इतिहास में और गहरे उतरने लगे। मध्य प्रदेश के भूमरा में इन्होंने खुदाई कराकर प्राचीन गुप्तयुगीन मंदिर और मध्यकालीन हैहयकलचुरी-स्मारकों की खोज कर डाली। बस यही उनको वह सफलता हाथ रखने वाली थी, जिसके लिए वे जन्म-जन्मांतर के लिए अमर हो गए।
9- साल 1922 था, राखालदास एक बौद्ध स्तूप पर शोध कर रह थे। इसके लिए उन्होंने खुदाई कराई और निकली मोहनजोदड़ो की प्राचीन सभ्यता। इसने राखलदास की जिंदगी बदल कर रख दी।
10- मोहनजोदाड़ो की खोज उनके लिए एक मील की पत्थर साबित हुई। लेकिन यहां वे रुके नहीं। इसके बाद वे पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्वी मंडल (कलकत्ता) के अधीक्षक हुए। इसके बाद वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में प्राचीन भारतीय इतिहास में 'मनींद्र नंदी प्राध्यापक' पद से नवाजे गए।
11. जीवन के अंतिम सालों में मोहनजोड़ो के खोजकर्ता राखलदास की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं रह गयी थी। लेकिन उन्होंने लिखना नहीं बंद किया। 'हिस्ट्री ऑव ओरिसा' को उनके मृत्यू के बाद प्रकाशक मिले।